*संकट के दौर में सरल परीक्षा का प्रारूप (हास्य-व्यंग्य)*
संकट के दौर में सरल परीक्षा का प्रारूप (हास्य-व्यंग्य)
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संकट के दौर में छात्रों के साथ सब की सहानुभूति है। नेता लोग उनके प्रति ज्यादा नरम रवैया अपनाने के पक्षधर हैं । यह स्वाभाविक है । आखिर आज के छात्र ही कल के वोटर बनेंगे । सरकार बनाने का महान उत्तरदायित्व उनके ही कंधों पर रहेगा। उनका महत्व दिनों-दिन बढ़ता चला जाएगा । दूरदर्शी नेता अभी से छात्रों के राजनीतिक महत्व को समझ रहे हैं । संकट में परीक्षा कैसे हो ,इस बात पर यद्यपि सभी चिंतित हैं लेकिन भविष्यदृष्टा नेतागण कुछ ज्यादा ही चिंतित हैं । मैं दूरदर्शी लेताओं की चिंता से काफी हद तक सहमत हूं । अगर छात्रों की चिंता न की जाए तो लोकतंत्र का क्या होगा ?
कई सुझाव सामने आ रहे हैं । एक तो यह है कि छात्रों को विद्यालय आकर प्रश्न पत्र लेकर जाने दिया जाए । उत्तर पुस्तिकाएँ भी उन्हें दे दी जाएँ और एक सप्ताह के भीतर वह घर पर आराम से बैठकर उत्तर लिखने के बाद उत्तर पुस्तिकाएँ विद्यालय में आकर जमा करा दें । मैं इस विचार से सहमत नहीं हूं ।
एक सप्ताह का समय बहुत कम है । कई छात्रों ने मुझे बताया कि जिस एक सप्ताह में प्रश्नों के उत्तर लिखकर विद्यालय में जमा कराने की बात की जा रही है ,उस सप्ताह उनकी बुआ जी अपनी ननद की शादी में व्यस्त रहेंगी। अतः उनकी मदद से प्रश्नों के उत्तर नहीं लिखे जा पाएंगे । मदद करने वाली वही एकमात्र आशा की किरण हैं। इसलिए कृपया समय को बढ़ाकर कम से कम 21 दिन का समय दिया जाना चाहिए। इसी तरह कई विद्यार्थियों की आपत्तियाँ मेरे पास आई हैं। किसी के मामा जी उसे एक सप्ताह में उपलब्ध नहीं है ,तो किसी के चाचा जी किसी अन्य कार्यवश विद्यार्थी के संपर्क में नहीं रह पाएंगे।
अब दूसरी जोखिम भरी समस्या पर चिंतन किया जाए । यह तो सही है कि घर पर बैठकर उत्तर पुस्तिकाओं में चार सुधीजनों के सहयोग से प्रश्नों के उत्तर लिख जाएंगे लेकिन विद्यालय जाकर प्रश्न पत्र लाने और फिर उत्तर पुस्तिकाओं को विद्यालय में जाकर जमा करने का काम भी जोखिम से भरा हुआ है । अगर इस दौरान छात्र को कोई महामारी लग गई तो जिम्मेदार कौन होगा ? इसलिए मेरा सुझाव यह है कि हर छात्र के घर पर जाकर उसको प्रश्न पत्र और उत्तर पुस्तिका दी जानी चाहिए ।
इसके अलावा कम से कम एक महीने का समय प्रश्नों के उत्तर देने के लिए छात्र को मिलना चाहिए ताकि उसकी बुआ ,मौसी ,चाचा या ताऊ इधर-उधर व्यस्त भी हों, तो इस एक महीने में आ जाएँ।
मेरा दिमाग एक और समस्या की ओर भी जा रहा है । छात्रों के पास किताबें अस्तव्यस्त पड़ी होंगी । अब वह कहां ढूंढते फिरेंगे ? उचित तो यही रहेगा कि प्रश्नपत्र के साथ संबंधित कोर्स की पुस्तकें भी विभाग उनको साथ में देता चला जाए ।
जितनी सुविधा विद्यार्थियों को परीक्षा देने में दी जाएगी ,वह उतनी ही कृतज्ञता का अनुभव करेंगे और भविष्य में जब वोट देने का अवसर आएगा तब इस बात को याद करेंगे कि किस नेता ने उनकी समस्या को महामारी के दौरान कितनी सहृदयता के साथ लिया था । आदमी ही आदमी के काम आता है । आज छात्र को जरूरत है । कल नेता को जरूरत पड़ेगी । इस समय नेता को छात्र के काम आना चाहिए । चतुराई इसी में है ।
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लेखक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451