श्रीराम – सबरी मिलन (कविता)
विश्वास विजय करने को रघुराम आ गये।
सब्र के बेर चखने सबरी के श्रीराम आ गये।।
मुस्करा उठीं देखो चेहरे की छुर्रियाँ
झूमकर नाच उठी पुष्पों की कलियाँ
बढ़ाया मान एक भीलनी का प्रभु ने
देने प्रतीक्षा प्रतिफल रघुराम आ गये
सब्र के बेर…………….।
आँखें हुई कमजोर राह तकते तकते
चुन चुनकर पुष्प राह में रखते रखते
जन्मों जन्मों की बुझ गई नयन तृष्णा
चमक उठे नयन फिर रघुराम आ गए।
सब्र के बेर…………….।
कहें माता कुछ खिलादो भूख लगी है
मेरी जठर अग्नि मिटादो भूख लगी है
चख चख कर खिलाए खूब बेर प्रभु को
मिटाने ऊँच-नीच के भेद रघुराम आ गए।
सब्र के बेर…………….।
सुना दो प्रभु मुझे कोई प्रवचन अपना
सुन वचन धन्य बना लूं जीवन अपना
बता जीवन दर्शन ज्ञान भक्त सबरी को
मिटाने को जगत अज्ञान रघुराम आ गये।
सब्र के बेर…………….।
घूमत घामत भटकत फिरत वन में
पता जानकी का राम ढूंढत वन में
भक्तिभाव की रचने नव परिभाषा
सबरी की कुटिया में भगवान आ गए।
सब्र के बेर…………….।
बोलो सियापति रामचंद्र की जय
©_स्वतंत्र_गंगाधर