श्रद्धांजलि
श्रद्धांजलि
कह रहा है ये वतन.
आज भर लो ये नयन.
कोटि कोटि कंठों से
निकली ये सच्चाई
भस्म हुए सपूत जो
मानवता के सिपाही.
चीख़ चीख़ कर दी
देश वासियों ने विदाई.
हर बूंद रक्त की बनी
दिव्य उत्सर्ग की कडी
हिंसा और दानवता भारी
बार बार मानवता हारी
तुमने खायी सीने पर गोली
शत्रु ने खेली खून की होली
देश पर मिटने का अंदाज ऐसा
वीरोचित कर्म का प्रभाव जैसा.
हर आंख के मोती याद में बहेे.
भूल न जाना बस ये कहे
हम स्तब्ध है पर लाचार नहीं.
कापुरुष दुश्मन की अब खैर नहीं.
देना चाहते हो अगर श्रद्धांजलि
अर्पित करना चाहते हो भावांजलि
देश से प्रेम करते रहना सदा,
भूल ना ना इन प्रेमियों की ये अदा.