श्रद्धांजलि समर्पित
कुल भूषण प्रतिष्ठ कलश को, मेघ नीर पंकिल किए
सुशोभित गृह बाखर मेरे, विशिक चाप् से झील किए
आकर प्रपंच के मानवता में, मंगल राहु शनि भूत हुए
अरण्य कृशानु, कंचन विहंग में, संचारित अवधूत हुए
ध्रुव अक्षुण वनिता विहार में, अविरलता को भूल गए
अष्ठ सिद्धि किसी व्याकुलता में, उष्णीष के मूल गए
अप्रमाणित छल द्वंभ द्वेषता, ग्राम जन्य में तुल्य गए
अविश्वसनी परि-घटना में, तुलसी अवधेश के मूल्य गए
विस्मरण अन्त: कुण्ड में, प्रज्ज्वलित ओज परिपूर्ण हुए
तेरी विस्मृति अनिष्पन्न, यात्राओं की, पूजा से सम्पूर्ण हुए
शुभाशीष तेरी छाया में, अब सुरभि सुमन सा, मुक्त हुए
तुलसी कृत, संकल्पित भूमि पर, कल्पवृक्ष संक्षिप्त हुए