शेष
नदी की धार में सब बह गया है।
मगर कुछ शेष अब भी रह गया है।
कल तक नेह से सींचा था हमने,
प्रणय का वृक्ष जो रोपा था हमने ।
अजब सा चैन मिलता था वहाँ पर,
तुम्हारा संग मिलता था वहाँ पर।
वो घर अब तो अकेला रह गया हैं
मगर कुछ शेष अब भी रह गया है।
हमारे मन के ओठो से न पूछो,
मिलन का गीत गाने को चले थे।
हजारों बंदिशो को तोड़कर के,
तुम्हे अपना बनाने को चले थे।
घरोंदा प्रेम का अब ढह गया है,
मगर कुछ शेष अब भी रह गया हैं।