शेष कुछ
अपने भीतर के भावों को
मैं जीती हूं या छलती हूं
कैसे कह दूं मैं जीती हूं
पग पग पर इसमें पत्थर हैं
और बड़ी-बड़ी चट्टानें हैं
दिग्भ्रमित करे जो भावों को
ऐसी इसकी धाराएं हैं
है सफल प्रयास अभी मेरा
मैं पार करूंगी सब बंधन
पर पहुंचेगी गंतव्य पर जब
क्या शेष बचेगा कुछ मुझ में।