बाल कविता: बंदर मामा चले सिनेमा
23/198. *छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
इतना रोए हैं कि याद में तेरी,
लोककवि रामचरन गुप्त के लोकगीतों में आनुप्रासिक सौंदर्य +ज्ञानेन्द्र साज़
जीवन भर मरते रहे, जो बस्ती के नाम।
आत्माभिव्यक्ति
Anamika Tiwari 'annpurna '
मन की मनमानी से हारे,हम सब जग में बेचारे।
राजे तुम्ही पुन्हा जन्माला आलाच नाही
चीत्कार रही मानवता,मानव हत्याएं हैं जारी
*राम हमारे मन के अंदर, बसे हुए भगवान हैं (हिंदी गजल)*
ग़ज़ल _ मैं ग़ज़ल आपकी, क़ाफिया आप हैं ।
भोले भक्त को भूल न जाना रचनाकार अरविंद भारद्वाज