शीर्षक : रिश्तों की खातिर
जब शिक्षण उसका हुआ पूरा
थी आई उस पर जिम्मेदारी
कल तक था जो मगरूर बना
आज है छाई उस पर लाचारी
सम्मान मान रखते हुए सबका
कर ली बाहर जाने की तैयारी
था गाँव में बनता जो राजकुमार
मजदूर बनने की कर ली तैयारी
चला गाँव से शहर को
लेकर आँखों में सपना
होगा सुखी परिवार मेरा
एक सुंदर घर होगा अपना
लेकिन उसको आभास नहीं
बिधना आगे ही चलता है
जो करता कर्म सदा नेकी के
उसे ठोकर बहुत भी लगता है
जीवन पूरा गुजार दिया
उसने जिन लोगों की खातिर
रहा ख्वाब भी अधूरा उसका
इल्जाम मिल गया है शातिर
जिन रिश्तों की पूजा कर
कभी निकला था वो घर से
नहीं पूछ रहा है कोई भी
उसको आज मुसीबत में
निवेदन है एक मेरा सबसे
नहीं ऐसे कदम कभी उठाना
जो आपको समझे अपना
उसे ठोकर ना कभी लगाना
रखना पकड़े हर दम कोना
रिश्तों की खातिर डोर का
भुला भी आएगा वापस
जो बिसरा है किसी भोर का
✍?पंडित शैलेन्द्र शुक्ला