शीर्षक–”जाको राखे साइयाँ मार सके न कोय”
शीर्षक–”जाको राखे साइयाँ मार सके न कोय”
रश्मि काफ़ी दिनों बाद गई सविता मौसी से मिलने तो उसने देखा कि 3 साल की पोती इरा बहुत ही शांत बैठी दादी के साथ टी।वी। पर, रश्मि और बेटी माला देखकर आश्चर्यचकित कि इस उम्र में बच्चे कैसे धमा-चौकड़ी करते हैं। “रश्मि तो पाँच साल पहले सविता मौसी के साथ हुई एक भयंकर सड़क दुर्घटना के बाद अभी मिल रही थी।” इस हादसे ने तो बिल्कुल दहला ही दिया था, मौसी की क्या गलती बेचारी की? वह तो मात्र दो वर्ष की सुगंधा को गोद में लिये बाईक के पीछे बैठी और छ: साल का सुकांत बीच में बैठा और मोहन मौसाजी बाईक चला रहे थे और वे जैसे ही मोड़ पर बाई ओर मुड़े ही थे कि सामने से तेज़ वेग से आते हुए ट्रक के टायर की चपेट में पूरा परिवार ही आ गया था, पर सुकांत को तो ज़रा भी चोट या खरोंच तक नहीं आई और “जाको राखे साइयाँ मार सके न कोय” यह कहावत सुकांत के साथ तो बिल्कुल सही साबित भी हो गई।
मोहन मौसाजी को कमर में झटका आया सिर्फ़, परंतु पीछे बैठी सविता मौसी को सुगंधा को बचाने की भरसक कोशिश में उसे बहुत ज्यादा चोटें आईं, पैरों में, सिर में और मुँह! … वह तो ऐसा छिल गया कि सूरत तो पहचान में ही नहीं आए, ऐसी अवस्था हो गई और तो और नन्ही-सी सुगंधा को भी सिर और एक पैर में बहुत चोट आने की वजह से वह रोए जा रही, अब आप सोचिएगा कि परिवार में असामयिक रूप से कुछ ऐसा घटित हो जाए और रिश्तेदार भी सभी दूर-दूर रहने वाले हों तो फ़ोन से खबर करे भी तो आखिर करे कौन? फिर आस-पड़ोस वालों को इस गंभीर हादसें के सम्बंध में ज्ञात हुआ तो मोहन के घनिष्ठ पड़ोसी सुकुमार! वे छोटे बच्चों के डॉक्टर थे और इस परिवार का भाग्य इतना अच्छा कि नन्ही सुगंधा को उपचार हेतु इन्हीं के पास लाया गया और आख़िर वे थे मोहन के परम मित्र। उन्होंने उपचार तो शुरू किया, पर सबसे पहले सविता मौसी की बड़ी बहन शीला मौसी जो मुंबई के बड़े अस्पताल नर्स थी, उसको फ़ोन करके इस हादसे से अवगत कराया ताकि उपचार के दौरान देखरेख करने के लिए दो-तीन लोग तो हों।
बहन के साथ हुए इस हादसे के बारे में सुनकर बेहद दुखी मन हो गया था शीला मौसी का। पर इस संसार में होनी को कोई टाल सका है भला? “इस समय लेकिन वह ज़रा भी भावुक नहीं हुई, हमेशा की ही तरह पूर्ण रूप से धैर्य और हिम्मत के साथ स्थिति को संभालने के लिये सतीश मामा, संगीता मामी वंदना संग आई।”
आते ही डॉक्टर सुकुमार ने शीला मौसी से कहा कि उपचार के दौरान नन्ही सुगंधा के एक पैर में जिसमें गंभीर चोट आई थी, उसमें पैर को सीधा रखने के लिए राड़ डालनी पड़ी और सिर में सात टाँके आए हैं, अत: उसे नितांत देखभाल की आवश्यकता है। “फिर शीला मौसी को उन्होंने हिदायत दी कि इस नन्ही जान को तो तुम ही ठीक कर सकती हो क्योंकि उसको गोद में रखना होगा और इसका पूर्ण ध्यान रखना होगा कि उसका पैर ज़रा भी हिल न पाए।” धीरे-धीरे ही सही पर ठीक हो जाएगी बच्ची, यह मैं पूर्ण विश्वास के साथ कह सकता हूँ।
सतीश मामा मोहन मौसा को देखने गया तो पता चला कि उसकी कमर की हड्डियाँ ज़ोर के झटके से गिरने के कारण काफ़ी ग्रसित हुई पर क्रेक नहीं है तो उपचार के दौरान शीघ्र ही ठीक हो जाएँगे।
बेचारी सविता मौसी अपने दोनों बच्चों को बचाने की खातिर अपनी जान जोखिम में डाल बैठी, उस समय भी मन में यही ख्याल… कि मुझे चाहे कुछ भी हो जाए, पर मेरे बच्चों की जान बच जाए। उसे तो गंभीर रूप से ग्रसित होने के कारण सिर में 60 टांके लगे, पैरों में भी थोड़े-बहुत टांके आए और मुख्य बात यह कि चेहरा पूरा छिल जाने के कारण प्लास्टिक सर्जरी करके पहले जैसा तो नहीं पर डॉक्टर द्वारा किसी तरह चेहरे को ठीक ज़रूर करने की पूर्ण कोशिश की गई और इस गहन समय में संगीता मामी लेकिन उसके साथ ही थी। जब सब कुछ उपचार होने के पश्चात जब सविता मौसी को होश आया तो स्वयं की इतनी तकलीफें बर्दाश्त करने के बावजूद भी उसका पहला प्रश्न था कि बच्चे एवं पति सही सलामत हैं न? उसकी समय वार्ड में मौजूद लोगों ने यह कहकर दाद दी की इस महिला ने तो हिम्मत शब्द को भी मात दे दी और आश्चर्य की बात यह है कि “अपनी जान पर खेल गई अपने परिवार की खातिर ऐसी भारतीय महिला को दिल से प्रणाम है।”
कुछ दिन बाद पूरा परिवार ठीक हो गया, सविता मौसी की थोड़ी कमज़ोरी थी, फिर शीला मौसी ने ऐसे समय अपनी नौकरी के साथ भी सामंजस्य बिठाते हुए पुणे में स्थानांतरण करवा लिया ताकि नौकरी के साथ-साथ बहन की देखभाल भी कर सके। क्योंकि सतीश मामा और संगीता मामी को वापस जाना भी ज़रूरी था न? आख़िर उधर भी परिवार था न उनका, “लेकिन ऐसे अपरिहार्य परिस्थिति से उबरने में परिवारवालों के सहायोग की नितांत आवश्यकता होती है, जो इस परिवार को मिली।” शीला मौसी जिसकी शादी किसी कारणवश नहीं हो पाई थी, वह वैसे ही परिचारिका बन लोगों की सेवा कर ही रही थी, तो उसने सोचा वह सेवा तो मैं बहन के साथ रहकर भी कर सकती हूँ।
रश्मि और माला उस छोटी बच्ची इरा को इतने हैरान होकर निहार रहे कि मासूम, पुणे जैसे शहर में फ्लेट सिस्टम में 10वी मंजिल पर घर में ही कैद हो गई। फिर भी वह जल्दी ही माला के साथ घुल-मिल भी गई और टी।वी। देखना छोड़कर बरामदे में खेलने भी लगी, छोटे बच्चों को और क्या चाहिए, प्यार से पुचकारने की ज़रूरत है। नर्सरी में प्रवेश दिलाया था इरा को, मौसी उसे घर में ही सिखाने की कोशिश कर रही थी, कभी किसी खेल में व्यस्त कर दिया, कभी कहानियाँ सुनाती, थोड़ा-बहुत टी।वी। देखने दिया, इस तरह से स्कूल की दुनिया में कदम रखने के लिये उसे तैयार कर रही थी। “फिर देखा तो सविता मौसी को एक पैर से चलने में और सिर नीचे झुकाने में अभी भी दिक्कत थी पर वह चल रही थी।” दो साल पहले पति के स्वर्गवास के बाद वह अकेली रह गई थी, इस दुख को सहन करने के लिये, परंतु सुकांत और सुगंधा ने अपनी पढ़ाई पूरी करने के साथ-साथ माँ को भी आख़िर संभाल ही लिया, “सुकांत ने ट्रैवल ऐजेंसी का व्यवसाय प्रारंभकर माँ की इच्छानुसार मिताली संग विवाह भी रचा लिया जो उसके साथ ही काम कर रही थी। साथ ही सुगंधा भी घर से ही फ्रीलांसिंग से अपना कार्य पूर्ण कर परिवार को अपना सहयोग दे रही थी।”
सविता मौसी ने जब रश्मि को बताया कि अभी हाल ही में सुगंधा का रिश्ता भी सुमित के साथ तय हो गया है और सोशल मीडि़या के माध्यम से उसने स्वयं ही वर ढूँढ़ लिया, क्योंकि इस हालत में मैं कहाँ से ढूँढ़ पाती? वैसे भी बेटी के सिर में भी सात टांकों के निशान अभी भी दिख रहे, तो उसके लिये जो भी रिश्ते आ रहे थे, उनको स्पष्ट रूप से स्थिति के बारे में पहले ही बता रहे थे ताकि बाद में किसी भी तरह की परेशानी न हो।
रश्मि ने सविता मौसी के सकारात्मक रूप को देखकर कहा, मौसी तुम ऐसी हालत में भी बच्चों का साथ बराबर दे रही हो, यह बहुत ही काबिले तारीफ़ है। वर्तमानकाल में ज़माने के साथ कदम आगे बढ़ाते हुए पारिवारिक सेवाएँ अभी भी निभा रही हो।
सविता मौसी ने कहा कि मेरे खुशियों की चाबी तो बच्चों के स्नेहरूपी तालों में ही समाहित है न? और बताने लगी कि सुगंधा ने जो वर चुना है उसका भी वियतनाम में स्वयं का काफ़ी अच्छा व्यवसाय है, जब कि अभी दोनों ने फ़ोटो से ही एक दूसरे को पसंद किया है, वास्तविकता में सीधे सगाई वाले दिन ही देखेंगे। यह सुनकर रश्मि विचारमग्न होकर सोचने लगी कि ऐसे लोगों की प्रेरणा से ही हम भी तो भविष्य में आगे कदम रख पाएँगे, आख़िर आज नहीं तो कल माला की भी शादी करनी है न?
इतने में सविता मौसी बोली, रश्मि तुम्हें पता है बेटे ने मुझे अपने मित्रो के साथ इंडोनेशिया पैकेज टूर पर भेजा और मैं मस्त घूमकर भी आई।
रश्मि मन ही मन ईश्वर को नमन करते हुए। … सच तो है मौसी की ही तरह हमें भी हर हालातों का सामना डट के करते हुए जीवन में मिलने वाली हर खुशी का लुत्फ भी आनंदपूर्वक उठाना चाहिए…क्योंकि जाको राखे साइयाँ, मार सके ना कोय।
आरती अयाचित
स्वरचित एवं मौलिक
भोपाल