शीर्षक-आया जमाना नौकरी का
शीर्षक-आया जमाना नौकरी का
नारी ,नर से कदम ताल मिलाकर,नये सफर पर चल पड़ी।
मजबूरी है आज, महंगाई की जो मार पड़ी ।।
बाई के हबाले,,छोड़ जिगर के टुकड़े को।
आई नहीं, लागे है कसाई,पीट रही जैसे पुतले को।।
स्टोब जल रहा धू- धू कर, पानी के उबाल जैसा आया तैश।
आया जमाना नौकरी का,नारी ओफिस जा ,समय कर रही कैश।।
समय भाग रहा है रफ्तार से, किट्टी पार्टी में हर महिला व्यस्त।
आधुनिक नारी,जी रही जीवन अपना, मस्त- मस्त।।
हाई सोसायटी का है भूत सबार, नहीं है बच्चों की परबाह।
फैशन की कर रही होड़, पार्टी में पाती वाह- वाह।।
चला फुलस्पीड पर म्यूजिक, आया नहला धुला रही बच्चे को आज।
रोता चीखता मुन्नू को न देख, डिस्को डांसर कर ,रूला रही शहनाज।।
मालकिन के आने से पहले अफीम चटा, सुला देती शिशु को कर नाराज़।
स्वयं करती सोलह श्रृंगार,फट- फट करती सारे काज।।
आया दूध पीता, सेरेलेक खाती ,है बड़े चाव।
खुद हों गई भैंस सी, भूख से ,मार- मार बच्चे को देती घाव।।
नोकरानी से स्टेट्स बढ़ता,ऐश से घूमती ,माॅल दो चार।
केश कार्ड से शॉपिंग करती, होती कच – कच हर बार।।
नहीं नहाती है ये नार, परफ्यूम छिड़क, खुशबू मारती बेहिशाब।
बाबू ने बोतल फोड़ी,मेडम को बताती हिसाब किताब।।
मेडम अब बज गए हैं चार,घर चली अलवेली नार।
बच्चा जब आया होश में,देख बच्चे की हालत, मां की ममता हुई बेजार।।
विभा जैन (ओज्स)
इंदौर (मध्यप्रदेश)