शीर्षक:मैं स्त्री हूँ
१६-
जी हाँ मैं स्त्री हूँ….
जो मोहब्बत सिखाये मैं वहीं हूँ
हर रिश्ते को शिद्दत से निभाये वहीं हूँ
कभी बेटी तो कभी बहन रूप निभाती हूँ
माँ रूप में ममता की मूरत मैं ही नजर आती हूँ
जी हाँ मैं स्त्री हूँ…
गोद में ममत्व व आँचल में दूध लिए होती हूँ
औलाद की खुशी हर दम ढूंढती नजर आती हूँ
ईश्वर का रूप अपने स्वरूप में छिपाए रहती हूँ
हर ग़म, दर्द को सीने में छिपाए रहती हूँ
जी हाँ मैं स्त्री हूँ…
सब्र की मिशाल पैदायशी ही लिए आती हूँ
अपनो की खातिर हर मुसीबत से लड़ जाती हूँ
हर परिस्थिति में खुद ढालने का हुनर रखती हूँ
हर रिश्ते में मजबूती से खड़ी नजर आती हूँ
जी हाँ मैं स्त्री हूँ…
हौसलों से अपने तकदीर बदलना जानती हूँ
खुद की कोख से देश रक्षक पैदा करती हूँ
अपने खून से रचना रचती हूँ
अपनी परवाह किये बिना औलाद को बचाती हूँ
जी हाँ मैं स्त्री हूँ…
दुनिया रचने की ताकत मैं रखती हूँ
प्रकृति की सुंदरतम एक कृति हूँ
सुनो ए दुनिया वालो मैं एक स्त्री हूँ
सही सुना जी आपने मैं ताकतवर स्त्री हूँ
जी हाँ मैं स्त्री हूँ…
डॉ मंजु सैनी
गाज़ियाबाद