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28 Apr 2024 · 1 min read

2122 1212 22/112

2122 1212 22/112
कोई मंजिल हमें नहीं मिलती
जानता मैं नहीं है क्या ग़लती

की है कोशिश फुज़ूल ना कोई
लगता इसमें खुदा की है मर्ज़ी

फूल दरगाह पर चढ़ाए हैं
हुक़्म से रब के वो गई अर्ज़ी

वो फ़क़ीरो को शाह ही रखता
आलम-ए-क़ुद्स जाने हैं क़ुदसी

फिर बलाए “ज़ुबैर” पर क्यों है
आते जाते हुए लगे ख़टकी

लेखक – ज़ुबैर खान…..✍️

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