यह जनता है ,सब जानती है
छल और छूठ है सत्ता के गलियारे मे,
फ़र्क नही कोई दुश्मन और प्यारे मे!
था जो कभी दुश्मन, चुनाव से पहले,
फ़र्क नही है फ़िर जीते और हारे मे !!
सभी समीकरण फ़ेल होते देखे हमने,
पर वो भूल गये फ़िर क्या था नारे मे?
मन्दिर-मस्ज़िद का मुद्दा् या ३७० का,
कोरी हवा बाज़ी है जनता के बारे मे !!
छल और छूठ पर देश-भक्त बनते हैं,
है फ़र्क नही भाई चचेरे और मौसेरे मे!!
अपना पेट भरो, जनता को मरने दो,
वो मरी बाढ-सूखा ,नेताओं के नारे मे!!
पर “यह जनता है ,सब जानती है ”
कि वो बिक गये, केवल एक इशारे मे!!
बोधिसत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा २८२००७