शीर्षक:प्रतिबिम्ब
शीर्षक:प्रतिबिम्ब
तू सच मे मेरा ही प्रतिबिम्ब हैं बिटिया
जन्म पर तेरे मेरा खुशी का नही था ठिकाना
बहुत ख़ास दिन मेरे लिए जब तू आई आँचल में
प्रथम दृश्या लगा कि दुनिया जीत गई हूँ आज मैं
क्योंकि…मेरा ही प्रतिबिम्ब था
आज जाग्रत रूप में मेरे समक्ष
नन्हे कोमल पदचिन्ह मानो जीवन दे रहे थे मुझे
प्रथम स्पर्श किया तुझे मानो जन्नत मिली मुझे
आज भी प्रथम दर्शन तेरा देता है ऊर्जा नई सी
तेरे जन्म से ही मिल मातृत्व होने का सुख
क्योंकि…मेरा ही प्रतिबिम्ब था
आज जाग्रत रूप में मेरे समक्ष
मानो गॉड में रुपहली सी परी आई हो समीप मेरे
प्रसव वेदना भी छू हो गई थी देख चंद्र मुख तेरा
मानो वात्सल्य की बाढ़ सी आ गई हो भीतर मेरे
तेरी वो प्रथम रोने की आवाज याद है आज भी
क्योंकि…मेरा ही प्रतिबिम्ब था
आज जाग्रत रूप में मेरे समक्ष
अब करेगी मेरे अधूरे स्वप्नों को ओर तू ही
मेरे सभी संस्कार होंगे परिलक्षित तुझमे
एक नवनिर्माण होगा नेरी सम्रद्धि में
करेगी बिटिया रोशन अपनी माँ का नाम
क्योंकि…मेरा ही प्रतिबिम्ब था
आज जाग्रत रूप में मेरे समक्ष
डॉ मंजु सैनी
गाजियाबाद