शीर्षक:पापा मेरे इर्दगिर्द हैं
शीर्षक:पापा मेरे इर्दगिर्द हैं
सब कहते है पापा दूर चले गए हैं
जहां से लौटने नामुमकिन हैं पर
मुझे तो अपने इर्दगिर्द ही
नजर आते हैं हर पल पापा
सहस्त्र बार सोचा मन मे कि
अब मैं रह गई हूँ अकेली ही
और पाती हूं तुरंत पापा का
साया साथ ही अपने मैं
बारिश की बूंदों से स्नेह बरसा
मेरे इर्द गिर्द ही होते है आज भी
शीतल प्रीत आज भी बहाते बयार से
सच में पापा की यादो से लगता हैं कि
साया बन आज भी इर्दगिर्द ही हैं मेरे
करती जब भी याद तो सपनो में आते है
नेह से अपने मुझे सहला जो जाते है
दूर, बहुत दूर चले जाते है उजाले में
करती इन्तज़ार रात होने का हमेशा
कि आप आओगे स्वप्न ने फिर से
लगता हैं कि इर्दगिर्द ही होते है आप मेरे
स्वप्न बन पापा इर्दगिर्द ही होते है मेरे
डॉ मंजु सैनी
गाज़ियाबाद