शीर्षक:पल
उस पल के इंतजार में वह पड़ा पस्त हाल
कि कोई टी आएगा जो देगा एक निवाला
जो मैं उठ सकूँ ,चलने की हिंम्मत आये मात्र
उस निवाले से मेरे जिस्म में बस कर रहा है
वो कर रहा है उस पल का इंतजार…
जार जार बहती आंखों के आंसुओं के बीच से
बेबसी से टटोलती सी किसी उस परछाई को
जो दे सके उसे हिंम्मत भरपेट खाना ताकि
वो चल सके बस खड़ा हो सके एक बार फिर से
वो कर रहा है उस पल का इंतज़ार…
भूखा पड़ा सड़क किनारे वो मासूम भविष्य
क्या कोई जान पाया उसकी भूख
हजारों मुसाफिर निकल जाते हैं अनदेखा कर उसको
दिन भर वो एक आस में कि शायद मिलेगा आज निवाला
वो कर रहा है उस पल का इंतजार…
भूख की कोई तस्वीर ले ही नही सकता
भूख तो सिर्फ महदूस की जा सकती हैं
गरीब को एक निवाला सिर्फ तस्वीर के लिए
यो आज लाइन लगी होती हैं पर भूख किसे दिखती हैं
वो कर रहा है उस पल का इंतजार….
आज तो मजबूरी को भी गरीब की उछाला जाता हैं
साथ खड़े कर दीर्फ़ एक केला देते दिखेंगे कई हाथ
शर्म नही आती उनको करते ये सब
मत खींचो फोटो में उनकी मजबूरी को
वो कर रहा है उस पल का इंतजार….
भूख की कोई जाति, रूप कोई रंग नही होता
भूख तो सिर्फ भूख’ होती है को देख पाया उसको दूसरा
भूख का कोई धर्म नही तो मिल जाती हैं हर गरीब में
गरीब तो पूछता हैं बस प्रश्न बता तू
वो कर रहा है उस पल का इंतजार….
ए रोटी अपना पता जहां मिल सकूँ तुझसे
बिन फोटो बिन भीड़ बता आज सच
ए रोटी तू मिलेगी कहाँ
दे अपना पता
वो कर रहा है उस पल का इंतजार…
डॉ मंजु सैनी
गाजियाबाद