शीर्षक:तख़्ती
विषय: तख़्ती
मेरे मन मे प्रश्नों का ज्वालामुखी उफनता विषय
(नेमप्लेट मेरे नाम की)
मैं स्त्री पूरा जीवन किया समर्पित
फिर क्यों न लटकी मेरे नाम की तख़्ती
न माँ के घर पर न तथाकथित घर
हम स्त्रियां घर की लक्ष्मी कही जाती रही हैं
लेकिन इसे विडंबना न कोई घर जो अपना हो
घरों के बाहर तख़्ती पर उन्हें जगह नहीं…
माँ से सुनती आई दूसरे घर जाना है
दूसरे घर आई तो सुना पराए घर की हैं
तो है कोई जवाब किसी के पास कि स्त्री
कहाँ की हूँ और क्यो नही टंगती तख़्ती मेरे नाम की?
जिम्मेदारियों का सब बहीखाता मेरे नाम का
घर के बाहर नाम पिता,पति,भाई का
जो वर्ष में फो बार कंजक कह पैर छुते हैं बेटी के
अफसोस उन्हें ही परहेज तख़्ती पर उनके नाम का
कहते है महिला पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिला रही हैं
तो फिर यहाँ क्यो उसको फव्हां नही मिलती
हाँ होता हैं किसी किसी घर के बाहर तख़्ती पर
किसी महिला का नाम पर क्या ये सोचनीय नही
आया है कुछ बदलाव पर क्यो संख्या इतनी कम
क्यो न हम खुद से करें यह प्रश्न कि क्या ये
हमारे घरों की हकीकत बया नही हुई
आखिर क्यों होता आ रहा है ये सब
ओर अभी कब तक ,आखिर क्यों
प्रश्न मेरे मन के टंगे रहते हैं मन पर मेरे
तख़्ती के जैसे बिना बदले वही के वही
आखिर क्यों..?
तख़्ती तक नही पहुंच हुई मेरी
मैं भी परिवार का अहम हिस्सा हूँ
कब होगी मंजु तख़्ती पर..?
अपनी पहचान पर…
डॉ मंजु सैनी
गाजियाबाद