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29 May 2023 · 1 min read

मैं मांझी सा जिद्दी हूं

ए अमल चित्त तुम्हें क्या हो गया
कभी कुछ सोचते हो कभी कुछ
कहीं एक जगह स्थिर ही न रहते
तन में कुछ अलग करने की है टीस
जो अग्र की ओर प्रेरित करती सदा
कुछ अलग करने, अलग बनने की
लगता न कुछ असंभाव्य भुवन में
चाहत तो है बड़ी ही ऊंची उड़ान की
जग में सुविख्यात, प्रख्यात बनने की
पूर्ण भरोसा है हमें अपने इस कर्म पर ।

मैं मांझी सा जिद्दी हूं, पेड़ सा अड़ियल हूं
जिसे तुफां हिला तो सकती पर झुका नहीं
पर्वत सा डटा हूं पर भय है थोड़ी सी हार का
पर डर नहीं है आसमान से फिसलने का हमें
लम्हें कुछ जाएंगे पर सफर जरूर सफल होगा
कुछ कर गुजरने की हममें है जलती ज्वाला
कलम ही मेरा जान, कविता ही मेरी पहचान
यही ए – दिवा कभी फितर तक पहुंचायेंगी हमें
मैं उस द्रुम का प्रणव अंकुर सा हूं इस भव में
जो भावी में विशाल बन, छाया देगा जनों को ।

कवि :- अमरेश कुमार वर्मा

Language: Hindi
1 Like · 197 Views
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