शीर्षक:किनारा
किनारा
मन के किसी कोने में
जज्बातों का तूफान घुमड़ रहा है मेरे
मानो खुशियो ने किनारा कर लिया हो
और मै सपने लिए समुद्र किनारे बैठ
कर रही हूँ प्रतीक्षा कि शायद समुद्र की लहरों सी
खुशियां मेरे मन के किनारे को प्रक्षालित करेंगी कभी
देख लहरो को किनारे से मिलते हुए मन मे भाव उठे
कि काश खुशियों की लहरें आये मेरे जीवन मे ओर
किनारा कर जाए सारे दुख मेरे जीवन से
लहरों के प्रचण्ड आवेग को समुद्र किनारे सह लेते हैं
वैसे ही जैसे मैं मन के ज्वार को दबाने की कोशिश में
दूर तक समुद्र किनारे को निहार न जाने कितने
प्रश्नों का ज्वारभाटा सा उफनता हैं भीतर मेरे
क्या कभी मेरे साथ मेरे मन के भावों को पढ़ पाओगे
क्या मेरे प्रश्नों रूपी साहिल को समुद्र रूपी
किनारों का अहसास मात्र भी हो पायेगा
कब तक मैं निहारती रहूंगी किनारों को
डॉ मंजु सैनी
गाजियाबाद