शीर्षक:आईना
शीर्षक:आईना
आईना भी तो सजाया था…
ईंट ईंट कर घर सजाया था
नजरबट्टू भी टँगाया गया था
पर अपनी ही आँखों में चालाकी को बसाया था
आइना भी निहारने को घर में लगाया था
ये क्या हुआ आइना मेरी हकीकत बोल गया था
आईना भी तो सजाया था…
फितरत तो मेरी पल पल रंग बदलती हैं
पर आईना आरपार बदले रंग दिखाता हैं
आईना कब कभी झूठ बोल पाता हैं
कितना भी बातो का आवरण ढक ले
पर आईने से कहाँ कभी ढक पाते हैं
आईना भी तो सजाया था…
दुसरो की खामियां देखने से पहले
खुद की छवि को निहारना सीखो
कुछ नही सीख पाए तो आईने से शिक्षा ले लो
आईना साफ साफ छवि दिखा देता है
पर फिर भी हकीकत ही तो बयां कर देता है
आईना भी तो सजाया था…
डॉ मंजु सैनी
गाज़ियाबाद