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20 Dec 2020 · 1 min read

शीत पर दोहे

हिमश्रृंगों को चूमकर, आया ऐसा शीत
गहरा कोहरा देखकर,धूप हुई भयभीत

काँप रहे फुटपाथ हैं,देख भयंकर ठंड
किस गलती का आज वो, भुगत रहे हैं दंड

कोई भी मौसम रहे, करें काम मजदूर
रोजी रोटी के लिए, होते हैं मजबूर

हाथ पाँव सब सुन्न हैं, दाँत सुनायें गान
दिनकर जी निकले नहीं, सड़कें हैं सुनसान

ठिठरी ठिठरी कल्पना,कैसे ले आकार
शब्द कलम भी ठंड से, दिखे बहुत लाचार

मैदानों में ले लिया, कुल्लू का आनंद
बड़े गज़ब की पड़ रही, भैया अब तो ठंड

गर्मी में बेइंतहा, सर्दी में कम धूप
दिखलाती ये रंग भी, मौसम के अनुरूप

नल का पानी भी लगे ,घुली बर्फ का जाम
स्नान ध्यान यदि कर लिया, जीत लिया संग्राम

किया ठंड ने ‘अर्चना’, घर के अंदर बंद
भुला दिया इस ठंड ने,मस्ती का आनन्द

सूरज लगता चाँद सा, और चाँदनी धूप
ठिठुर ठिठुर कर सूर्य का, बदला हुआ स्वरूप

20-12-2020
डॉ अर्चना गुप्ता

Language: Hindi
4 Likes · 6 Comments · 315 Views
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