*शीतल शोभन है नदिया की धारा*
शीतल शोभन है नदिया की धारा
***************************
शीतल शोभन है नदिया की धारा,
निर्मल नीरज सी नदिया की धारा।
लहराती बलखाती बहती जाये,
दरिया जा मिलती नदिया की धारा।
चुपके-चुपके गिरि गर्भ से निकली,
चंचल कंचन सी नदिया की धारा।
छू कर लहरें मन मंदिर सा हो जाये,
तन-मन ललचाती नदिया की धारा।
टेढ़ी-मेढी नागिन सी बढ़ती पथ पर,
जल थल मचलती नदिया की धारा।
मनसीरत निर्झरनी पहाड़ों की रानी,
मोहिनी सी मूर्त है नदिया की धारा।
****************************
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)