शिव स्तुति
शिव स्तुति
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माया के जंजाल से,
शिव हमें तुम मुक्त कर दे ।
राग से वैराग्य करके,
शिवत्व का वरदान दे दे।
क्रोधाग्नि में जलूँ क्यों मैं,
कामरिपु विषहार तू।
लोभ ना हो जिन्दगी में,
सन्तोष का सुख सार दे दे।
अचिन्त्य रुप निर्मल तेरा,
वो निर्मलता उपहार दे दे।
संकीर्णता को दूर करके,
व्यापक हृदय उदार कर दे।
चिंता से तन निर्बल हुआ है,
स्थितप्रज्ञ मन रहता नहीं ।
हे गौरीपति!निर्भय करो अब,
अमरत्व का वरदान दे दे…
मौलिक और स्वरचित
मनोज कुमार कर्ण