शिव दोहे
द्वादश लिंग बिराजते, पावन तीरथ धाम।
आग नयन विष कंठधर, त्रिपुरारी प्रभु नाम।।
फागुन चौदस रात को,बिल्वपत्र जल हाथ।
पूजा -अर्चन जो किया, पार लगायो नाथ।।
हाथ जोड़ विनती करे, कृपा दृष्टि प्रभु ज्ञान।
देख भक्त अनुराग को,खूब बढ़ायो मान।।
आए हैं बारात ले, भस्मी तन पर साज।
भूत प्रेत सँग राजते,स्वागत नगरी आज।।
काशी शिव नगरी प्रभू, विनय करे बहु बार।
पीर पड़ी है भक्त पर,आ जाओ इक बार।।
डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”