शिव तेरा अभिनंदन
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तेरी गूँथी जटाओं का अभिनंदन।
जिसमें हिमनद है खोई, बहती गंगा की धारा जिसमें,
उन्हीं जटाओं का करता अभिवादन।
हे शिव तेरा अभिनंदन।
लिपटी हुई भुजंगों जैसी सिमटी हुई पर्वतों जैसी
ले अमृत धारा ज्यों जल की
जीवन की बनकर संबल सी
उन सारी जटाओं का है अति नमन।
हे शिव तेरा अभिनंदन।
शोर है जहां विभोर तेरे सप्त-तान में।
स्वर हो रहा जहाँ, मुग्ध तेरे प्राण में।
पर्वतों की श्रेणियाँ,गूँथी हुई ज्यों वेणीयां
उंडेल सूर्य जा रहा स्वर्ण सी रश्मियां।
उन सारी शृंखलाओं को है फिर नमन।
कि श्याम घन दौड़ता तुम्हारे प्रण को तोड़ता
डमरुओं के स्वर तुम्हारे हाथ में उंडेलता।
डम,डमाडम छेड़ता, नृत्य को उकेरता।
शिव को जो है मोहता।
उन सारी गड़गड़ाहटों को कोटिश: नमन।
ललाट पर जो आग है, उजाड़ता सुहाग है।
गले में बैठकर फुंफकारता जो नाग है।
क्रोध में भरो न शिव ये तुम्हारा विराग है!
दीन सबही लोग हैं,दिशा न पथ-प्रभाग है।
भाग्य बन के सामने टिके रहो है नमन।
मथा न मन, जा मथा समुद्र की विशालता।
प्राप्त करने ज्ञान को, पालता मुगालता।
रौद्र हो उगल दिया विष समुद्र दे गया।
सृष्टि के कल्याण हित शिव ने उसको पी लिया।
तुम्हारे नीलकंठ को प्रभु बहुत नमन।
यह तेरा अभिषेक है और मेरा छोटा विवेक है।
ग्रहण करो समस्त सुख से,मेरी वेदना अतिरेक है।
अस्तित्व सब प्रयास है तेरा बड़ा विश्वास है।
हो प्रसन्न जब प्रभु तब ही केवल हास है।
तुम्हारी प्रसन्नता को हमारा है पुन: नमन।
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