शिक्षा संग यदि हुनर हो…
शिक्षा संग यदि हुनर हो,
तो जीवन पथ सुगम हो ।
सँवरे भविष्य तरुण का ,
जीवन में कभी ना गम हो ।
नन्हां बया का घोसला ,
गज़ब की कारीगरी है ।
तिनके समेत-समेत कर ,
हुनर की ही बाजीगरी है ।
पंक्तियों में सीधा होकर ,
चींटी हुनर दिखलाती ।
अनुशासित,संगठित रहकर,
मुश्किल सा लक्ष्य पाती ।
हुनर ही तो वो कला है,
जो नजरों को पढ़ है लेती।
आशिकी और दुशमनी को,
अंखियों से जान लेती ।
जीने का हुनर ही ,
नैया को पार लगाती ।
मुश्किल भरी डगर में ,
पतवार थामे रहती ।
जीवन के हर कला में ,
छिपा है नसीब अपना।
खामोश रहकर सोचो ,
पूरे करो सब सपना ।
कृषि कार्य का हुनर हो ,
तो मिट्टी बन जाए सोना ।
हरियाली का दामन थामों ,
छोड़ो अब रोना-धोना ।
गा लो या तुम रो लो ,
वो भी तो एक हुनर है ।
अभिनय से चलती दुनियां ,
कितना अजीब शहर है ।
जीवन भी एक सर्कस है ,
आए हैं हुनर दिखलाने ।
भांति-भांति के करिश्मों से ,
लोगों का मन बहलाने ।
प्रण कर लो तुम इसी वक़्त ,
अहमियत हुनर की समझेंगे।
हौसलों की उड़ान भरकर ,
मंज़िल पर कदम रखेंगे ।
मौलिक एवं स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – १४ /१२ / २०२१
शुक्ल पक्ष , एकादशी , मंगलवार
विक्रम संवत २०७८
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