हमारा मन
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गीतिका
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लगेगा किस तरह तुम बिन हमारा मन,
नहीं कर पाएगा जग से किनारा मन।
बताओ क्यों सहेगा जुल्म दुनिया के,
कहीं तो पा सकेगा अब सहारा मन।
खिजा में फूल खिलने की नहीं चाहत,
निराशा की घड़ी में फिर पुकारा मन।
मिटा दो दूरियां सारी रहम कर दो,
बसा दो तैरता जल में शिकारा मन।
बरसती सावनी रिमझिम फुहारों में,
बनेगा खूब खुशियों का पिटारा मन।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य