शिकवे-शिकायतें।
तूने दी ना कभी कोई आवाज़ मुझे,
मैने भी कभी तुझे पुकारा ना होगा,
चल मिलते है अहम को कर के किनारे,
कि गुज़रता ये पल फिर हमारा ना होगा।
शिकवे-शिकायतें सब रह जाएंगे यहीं पे,
कि कुछ भी यहां पे तेरा-मेरा ना होगा,
तेरी सुबह की शायद कभी रात न हो,
या मेरी रात का कभी फिर सवेरा ना होगा।
तय है मुलाकात मौत से एक दिन,
कि इसमें कहीं कोई रियायत नहीं,
हर बोझ से दिल हो हल्का ऐसे,
कि रह जाए ना बाकी कोई शिकायत कहीं।
-अंबर श्रीवास्तव।