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10 Jun 2023 · 1 min read

“शायद”

कुछ नहीं बचपन सा सरल शायद,
कोई नहीं पानी सा तरल शायद।

गर ढूँढ़ सको तो ढूँढ़ कर देखो,
कोई नहीं आईना सा असल शायद।

आई जो खुशबू गुलाब की,
कोई मीत मिले निश्छल शायद।

सब्र के पत्ते अति कड़वे,
सब्र का होगा मीठा फल शायद।

रुके हुए भी चलते दिखते,
ये सौर- रीत अटल शायद।

हर दिन को मुस्कुराकर जियो,
जैसे मौत आएगी कल शायद।

-डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
नेलसन मंडेला ग्लोबल ब्रिलियंस अवार्ड प्राप्त।

Language: Hindi
11 Likes · 7 Comments · 166 Views
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