शायद वो सिर्फ एक सपना ही होगा
मंदिर की सीढ़ी पर शांति को पाना
राहगीरों को शीतल जल पान कराना
उस मिटटी का क़र्ज़ उतारने
एक बार मुझे मेरा बचपन दे जाना
बरगद के बेलो पे निर्भीक झूल जाना
पीड़ा व चिंता को यु ही भूल जाना
सेवा निबृत्ति के समय की योजना बनाना
कोई मेरे घर मेरा सन्देश ले जाना
भय के बादल मे विमान उड़ाना
माया चक्र भेदने अभिमन्यु बन जाना
स्वयं के मन को कारागार बनाना
बस हो चूका सपनो का संसार बसाना
कहेगा अब न लौटूंगा मैं यहाँ से
करके सुभगता से स्पर्श सभी जन को
क्या मन्नू अपने गांव पहुंचकर,
समझा पायेगा अपने जीवंत मन को
साकार ये सब प्रतीत होने लगा है
समय पटल पर मेरे किये उत्कीर्णन
सभी आलेखों को अब बिखरना ही होगा
शायद वो सिर्फ एक सपना ही होगा