चुप
शायद मेरी बातें तुम्हें रास नहीं आयेंगी, मैं चुप यहीं पर बैठा हूं।
अल्फ़ाज़ें ठिकाना जान नहीं पायेंगी, मैं चुप यहीं पर बैठा हूं।
कोई राहगीर अब राह बन गया, मैं चुप यहीं पर बैठा हूं।
नज़र में ना आयेंगी मेरी पलकें यूंही, मैं चुप यहीं पर बैठा हूं।
कितने आये शोर दिल में लिए, मैं चुप यहीं पर बैठा हूं।
सन्नाटें भी कैद हुए इस बार, मैं चुप यहीं पर बैठा हूं।
कुछ आहट उठी सीने में मेरे, मैं चुप यहीं पर बैठा हूं।
एक अश्क छलका यादों से मेरे, घुमंतू मैं चुप यहीं पर बैठा हूं।।
~Ghumantu