“शातिर बहेलिये”
दिखते हैं सबके
अलग-अलग हुलिये,
आखिर हैं तो
वो शातिर बहेलिये।
हाथ अपना जोड़कर
खींसे निपोरकर
लोक-लुभावन भाषणों का
खूबसूरत जाल बिछाते,
मुस्कुराते बोतलों का
खनकते रुपयों का
लुभाते उपहारों का
दाना जमकर डालते,
होते हैं गज़ब के
उन सबके नजरिये,
आखिर हैं तो
वो शातिर बहेलिये।
मुद्दे उछलवाते हैं
नारे जमकर लगवाते हैं
जोश दिलवाकर
उंगलियों पर नचाते हैं,
हर तरीके से
बेहद सलीके से
कभी-कभी धोखे से
अपना काम बनाते हैं,
देकर उनको साथ
अब हाथ मत मलिये,
आखिर हैं तो
वो शातिर बहेलिये।
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
श्रेष्ठ लेखक के रूप में
विश्व रिकॉर्ड में दर्ज, टैलेंट आइकॉन 2022