शाकाहारी बने
पाशाणों में प्राण प्रतिष्ठित करते हो।
नदी, पहाड़, वृक्ष की पूजा करते हो।।
नव ग्रह दसों दिशाओं के याचक हो।
तुम पंचतत्व व पंचकर्म के जातक हो।।
क्यूं ईश्वर अंशों को तुम ग्रास बनाते हो।
शाकाहारी छोड़ पशुमांस क्यू खाते हो।।
तेरा दोहरा चरित्र ही तो दुष्चरित्र बनाता है।
मुंह में राम, कर्म में रावण को अपनाता है।।
छोड़ो करना पत्थर में तुम प्राण प्रस्तिष्ठित।
निर्मल मन में कर लो केवल राम प्रतिष्ठित।।
थोड़ी करुणा, प्रेम भी थोड़ा धारण कर लो।
बनो मनुज ‘संजय’ व कष्ट निवारण कर लो।।