शहीद के घर…..एक होली…..ऐसी भी…..
एक बच्चा, जिसके पापा शहीद हुये है,और होली पर घर नही आये है…वो अपनी माँ से पूछता है……..
न वाट्सएप पर मेसेज किया,
न विडिओ काल हैं आया ।
क्या मोबाइल सायलेंट है,
क्यूं फोन, न, उनने लगाया ।।
इस होली पर न बात करी
,और न वो घर पर आए है।
क्यूं भूल गये वो हमको, या
ई मेल हैं उनके आए।।
जिद से कहता है……
हाथो सबके पिचकारी भाए,
रंगों की पुड़िया भी संग लाए।
मैं कब तक देखू राह.माँ,
सब मिलकर सखा मुझे चिढ़ाए ।।
सबके घर आंगन रंग बिखरा,
क्यूं घर अपना सूना बिसरा।
खामोश सी तु बाहर बैठी,
क्यूं सन्नाटा घर मे पसरा ।।
पापा संग होली जलाना है,
फिर रंग भी उनको लगाना है।
कह दो उनसें माँ,अब न,
कोई चलने वाला बहाना है।
मनुहार……
न मांगुगा पिचकारी मैं,
और न कोई जिद है मेरी।
बस पापा मेरे भी आये है,
सबको बात यही बताना है।।
न बात करी मुझसे,
न कंधे पर मुझे बिठाया है,।
क्यूं रुठ गये वो मुझसे,
क्या मैने उन्हे सताया है।।
माँ का जवाब……मां कहती है…..
न पापा आयेंगे अब की बार,
होली वो मनायें संग चाँद सितार।
धरती माँ को देकर रंग सारे,
फिर रंग लेकर गये अंबर के पार।।
तुझको पिचकारी मै ही दिलाउ,
न मै रोउ,न तुझे रुलाउ।
हम दोनो संग-संग होली मनाये,
रंग मुझे लगा,मै तुझे लगाउ।।
धरती माँ से पहले तार जुड़े,
अब अंबर ही उनको भाया है।
उन्हीं तार के जरिए अब ,
उनका ये पैगाम आया है।।
रेखा कापसे(Line_lotus)
Hoshangabad MP