” शहीद की बिटिया “
जमाने से मुझको नहीं कोई मतलब
तुम्ही मेरी दुनियाँ चले आओ पापा…
बैठी हैं कब से सीढ़ियों पे भूखी
मैं और मेरी गुड़िया चले आओ पापा…
पता भी है कब से ये बाकी पड़ा है
मेरा काम मुझसे नहीं होता पूरा…
मम्मा तो कुछ भी बताती नहीं है
कैसे जाँऊ स्कूल ले आधा अधूरा
छुटकु ने मेरी कलम तोड़ दी है
नहीं देता बनिया चले आओ पापा…
मम्मा को ना जाने क्या हो गया है
बहुत लोग आकर के समझा रहे हैं..
कोई आ रहा है कोई जा रहा है
सभी चुप के आपस में बतिया रहे हैं..
कोई बात मुझसे नहीं कर रहा है
तुम्ही करने बतियाँ चले आओ पापा…
सुनो टाॅफियाँ भी खत्म हो गई हैं
सहेलियाँ सब मुझसे रूठी हुई है…
पता है ना कल मेरी गुड़िया की मेरिज
है और ये तुम्हारे बिन टूटी हुई है….
छुटकु की गुड़िया की टूटे खिलौनों की
लेकर के खुशियाँ चले आओ पापा…
–दयाल योगी ?