शहीदों की दास्तां
आजादी का मतवाला हूँ
कुर्बानियों की जज्बात है हमें
भारत के ज़ंजीरों को हटाएंगे
उन फिरंगियों को भी भगाएंगे
दूध कर्ज चुकाने का वक्त आया
उठ जाओ, दहाड़ दो उसे….
आजादी थी, सबकी चाहत
अपनी जमीं अपना आसमां
अमर हैं वों वीर सपूतों
जिसने जान की बाजी लगा दी
शहीद हो गये उन वतनों पर
दे दी अपनी अमूल्य कुर्बानी
जान न्योछावर हो रही वीरों की
रो रही मां की वेदना-सी आंचल
न जाने बहना की वों कलाई
क्यो दूर होती जा रही थी उनसे
घायल हिमालय की वों व्यथा
दर्द सह रही थी वों दास्तां
आजादी का आवाह्न अब है
जहां भारत की संघर्ष काया
गुलामी की जंजीर मुझे ही क्यों
उन वीरों से जाकर पूछो….
कालापानी और जेलों की दीवार
तोड़ देंगे हम उन बंधनों को
खून से खेल जाएंगे हम
मर मिटेंगे उन वतनों पर
छूने नहीं देंगे उन पर को
जहां हैं वीर सपूतों की दास्तां