शहर में गांव से आया, शहर बेहद लुभाता है।
गज़ल- गांव
1222…….1222…….1222…….1222
शहर में गांव से आया, शहर बेहद लुभाता है।
मेरे सपनों में मेरा गांव अब भी रोज आता है।
सैकड़ों आम जन पंक्षी थे बैठे छांव में जिसकी,
वो मेरे गांव का बरगद मुझे अब भी बुलाता है।
वो दादा दादी के किस्से, हमारी यादों में रहते,
जो एसी तक न दे पाता,वो ठंडक पेंड लाता है।
हरे पीले बिखरते रंग हैं फसलों के जब यारों,
तो उम्मीदों के खिलते फूल हर शै मुस्कुराता है।
कहां अम्मा बुआ भाभी का जैसा प्यार शहरों में,
जो देखा प्यार गांवों का तो प्रेमी बहक जाता है।
……..✍️ प्रेमी
स्वरचित एवं मौलिक