शहर के हालात कैसे कैसे
हमने देखा शहर के हालात कैसे कैसे ?
लोगों की तक़दीर और जज़्बात कैसे कैसे ?
बेसमय सब साथ रहते वादें बातों से अपने ,
पर बदल जाते समय पर आवाज़ कैसे कैसे ?
लौटकर सत्ता सियासत में जो दुबारा आ गया ,
ओ देने लगा अब लोगों से बयान कैसे कैसे ?
हाथ से जिसके निवाला मुँह तक गया नहीं ,
ओ बैठें बैठें देखता है ख़याल कैसे कैसे ?
पा गया परिणाम अपनें फलसफों का जो ,
देखिए चेहरे पर उसके मुस्कान कैसे कैसे ?
हँसी पर जिनके कभी हँसता था क़ायनात ये ,
आज बैठें है दालान में ओ उदास कैसे कैसे ?
दौलत शोहरत ये अमीरी चार दिन की चाँदनी ,
फ़िर मद में इसके करता क्यूँ बात कैसे कैसे ?
©बिमल तिवारी “आत्मबोध”
देवरिया उत्तर प्रदेश