आखिर कितना शर्मिंदा हुआ जाए ?
देश में नारी जाति के साथ ,
किसी भी अवस्था में,
स्थिति में ,
घर में या बाहर ,
अनाचार ,अत्याचार ,व्यभिचार ,
बलात्कार होता रहेगा।
और देश हर बार शर्मिंदा ,
होता रहेगा।
ना कड़े कानून बनाएगा ,
ना भेड़ियों को फांसी पर चढ़ाएगा ,
बस मूक दर्शक बनकर शर्मिंदा होता रहेगा।
अगर इसी तरह कमज़ोर न्यायिक व्यवस्था रही देश की
अगर नारी जाति की सुरक्षा और सम्मान न दिला सके ,
तो सदियों तक / कयामत तक शर्मिंदा ही होता ,
रहेगा देश ।
आखिर शर्मिंदा होने की कोई हद होती भी है या नहीं!!
क्या शर्मिंदा होते होते थक नहीं जाते आप लोग ?