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30 Aug 2021 · 1 min read

शब्द

शब्द ही गूँजा जब सृष्टि का
उद्भव हुआ
शब्द ही हँसा था जब माँ के
आँचल खेला

मेरे प्रथम रूदन में भी शब्द ही
सिसका
किलकारी बन शब्द ही मुख से
फूटा मेरे

प्रशंसा में भी शब्द बना था तासीर
कलेजे की
ठण्डक बन शब्द शीतल हो गया
बर्फ सा

जमीं पर घुटनों से चलने से ले कर
गोद तक शब्द
बचपन भी बीत गया यूँ ही शब्दों से
जूझते जूझते

यौवन की दहलीज पर पैर रखा जब
उलझता गया
शब्दों के जाल में मैं बरबस यूँ
फँस गया

प्रेम की मरीचिका में भी शब्द ही
साथ थे
मुलाकातों के आलिंगन में शब्द
बने आनंद

तब से अब तक प्रेयसी के कसनी बद्ध
से आज तक
शब्दों की डग पर बढ़ता ही मैं चला
आ रहा हूँ

Language: Hindi
79 Likes · 1 Comment · 431 Views
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