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1 Jun 2023 · 1 min read

शक्तिशालिनी

तेरी चूड़ियां बोलती है जितनी
काश ! उतना तुम बोल पाती ।

तुम लट सुलझाती हो जितनी
काश ! उतनी खुद सुलझ पाती ।

लक्ष्मीरूप तुम्हें ये दुनिया बताती
क्यों न दुर्गा तुम स्वयं बन जाती ।

बिना किसी सुरक्षा के भरोसे
अपनी रक्षा तो स्वयं कर पाती ।

तुम रूई के फाहे सी कोमल
आखिर क्यों दब जाती इतनी ?

तुम भी बराबरी के लिए हो
नही दबने के लिए हो बनी ।

एक जान बचाने के सवाल में
बचा सकती जान हरहाल में ।

ना चाहो पूजी जाए देवीमाता
चाहे तुम बस नारी अस्मिता ।

तुम तो प्रेम,सम्मान की प्यासी
ना चाहे बने महारानी ना दासी ।

जग की सतत् संतति पालनी हो
वो तुम्ही शक्ति शक्तिशालिनी हो ।

तुम हो धैर्य धरती धरती के जैसे
कष्ट सह लेती हो तुम कैसे-कैसे ।

तुम परी परिपूर्ण शक्ति सबला
आश्रय,आरक्षण क्या करेंगे भला ।

अब अपनी शक्ति रही हो पहचान
नित बना रही नये-नये कीर्तिमान ।
~०~
मौलिक एवं स्वरचित :रचना संख्या- ०९
जीवनसवारो,मई २०२३.

Language: Hindi
317 Views
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