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2 Dec 2018 · 1 min read

वक़्त रेत सा…

वक़्त रेत सा…
यूँ हाथों से फिसलता चला गया;
बंद मुट्ठी में भी कहाँ
रोके वो रुक पाया l

वो मुलाकतों से पैहले
की जो मुलाकतें थी ;
वो इक झलक की चाहत,
वो जुनूँन,
बस यूँ समझ लो …
बिन बारिश के बरसातें थीं l

यूँ तो यादें भी तेरी,
कुछ कम नायाब नहीं ;
पर होते जो तुम संग,
तो वक़्त पर अपना राज होता l

वो इक पल जिसमें,
सितारे हमारे हक़ में होते;
हो जाती रूहानी…
सारी कायनात,
बाहों में तेरी हम होते ;
जो होता मुमकिन,
उस वक़्त को हम वही रोक लेते l

पर वक़्त रेत सा…
“दीप” हाथों से फिसलता चला गया।।

कुलदीप कौर “दीप”

Language: Hindi
7 Likes · 3 Comments · 342 Views
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