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3 May 2024 · 1 min read

सही ग़लत का फैसला….

किसी गम्भीर मुद्दे पर तर्कहिन संवाद,
बिगाड़ देता है जिव्हा की लय।
थरथराते होठ शब्दो की सार्थकता खो बैठते है,
कहना कुछ चाहते है उच्चारण गलत कर बैठते है।
शब्द साथ छोड देते है धड़कन बंद हो जाती है,
आत्म विश्वाश खो बैठते है सही गलत के फेर में।

आत्मग्लानि होती है बाद में पछतावा भी होता है,
पर अहं हावी हो जाता है।
शब्दकोष खाली लगता है गलत को गलत कहने में,
सही गलत के चक्कर मेंविश्वाश ही खो बैठते है।
ता उम्र उदासी के सिवाय कोई चारा ही नही होता,
मन मे खलल होता है, सही गलत के फेर में ।।

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