वक़्त की नज़ाकत क्या कहिएगा!
ज़माने की फ़ितरत !
क्या कहिएगा साहब
भरे बाज़ार में मैं निकला
भरपूर जोश के साथ
बड़े ही होश के साथ
अपने तमाम सच लेकर बेचने को
इक़ हुजूम वहां पहले ही मौज़ूद था
अपने तमाम झूँठ लेकर बेचने को
मैंने भी आवाज़ लगाई
उन्होंने भी आवाज़ लगाई
दोनों खेमें थे खासे व्यापारी
मग़र वक़्त की नज़ाकत
क्या कहिएगा साहब !
दुज़े खेमें के सारें झूँठ बिक गए
शाम क्या दुपहर से पहले
औऱ मैं अभागा व्याकुल सा
अपने सारें सच
शाम तलक लेकर बैठा रहा
कम्बख़्त इक़ भी खरीदार ना मिला
जो मेरे सच भी खरीद सकता
इक़ भी नहीं कोई भी नहीं ……
उनके झूँठ की क़ीमत क्या कहिएगा
मेरे सच की क़ीमत क्या कहिएगा
क्या कहियेगा ज़माने की फ़ितरत
इस वक़्त की नज़ाकत क्या कहिएगा…….
_____अजय “अग्यार