व्यथित ह्रदय
व्यथित ह्रदय विरह के अँधेरे में,
धड़कता है बेमतलब बिन प्रेम के।
आहटों की सन्नाटी रात में,
अवसाद की घाटी में रहता है ये दिल अकेले।
विषाद की बूँदों से जले हुए,
व्याकुल विचारों के सागर में रहता है ये अन्तःकरण।
संघर्षों के घेरे में अँधेरे की छाया,
चाहत के बिना बहता है ये मनोवृत्ति की नदी में।
प्रेम की कीमत को नहीं समझ पाता,
दर्द के संगीत को सुन नहीं पाता।
तन्हाई की भूमि में खो जाता है,
व्यथित ह्रदय सब कुछ भूल जाता है।
पर फिर भी, उम्मीद की किरणें हैं,
जीवन की आशा की फूलों की बौछारें हैं।
हार न मानो, व्यथित ह्रदय,
धैर्य बनाओ, आगे बढ़ो और आगे बढ़ो।