व्यक्ति का दर्द
दर्द, ना ही कहता है।
अब नहीं, और नही
दुआ करती हूं कि तु ना मिले कभी बददुआ की तरह।
सौभाग्य कहलाने वाले मेरे
दुर्भाग्य ना बन
जिंदगी में इससे बड़ा
क्या होगा अभिशाप
संग होकर जीना था।
वो ही (छ्ल) असंग कर गया ।
दर्द इतना ही कहता हैं।
अभिशाप सा लगता है जीवन
भार-सा तन-मन दोनो।
खिलते फूल की तरह जन्मते हैं।
बढ़ते वक्त में मुरझा जाते हैं।
सफर के अंत में प्राय: सभी
श्री विहीन होकर जाते (मरते) हैं।_ डाॅ. सीमा कुमारी , बिहार, भागलपुर,दिनांक- 29-4-022 की मौलिक एवं स्वरचित रचना जिसे आज प्रकाशित कर रही हूँ।