वो सुहानी शाम
अबकी जब तुम आना
इक शाम सुहानी लाना ।
कुछ मुस्कान कुछ वादे
कुछ एहसास भी
संग में लाना ।
उस भीनी शाम के
हर एक मीठे पल को
मैं चुन चुन सहेजुगीं ।
अपने यादों की गठरी में
आहिस्ता आहिस्ता सजोंउगीं।
अपना फर्ज निभाते निभाते
गर तुम दूर कभी हो जाओगे,
खोल उन यादों की गठरी
उन्हें सोच मुस्काऊंगी।
उन बीते पलों की यादों
को शब्दों में ढालूंगी।
दे उन्हें कविता का रूप
किसी शाम गुनगुनाऊंगी ।
जो भूल गए तुम कभी मुझे
वो शाम याद दिलाउगीं।