वो लम्हें जो हर पल में, तुम्हें मुझसे चुराते हैं।
वो लम्हें जो हर पल में, तुम्हें मुझसे चुराते हैं,
भटकते हुए तुझे ढूढ़ने, पास मेरे हीं आते हैं।
किस्से तो तेरी शान से, सबको सुनाते हैं,
पर सारांश की तलाश में, आकर मुझसे हीं टकराते हैं।
हवा में रेत की तरह, मीलों तक तुझे उड़ाते हैं,
पर दुआ बनाकर, लकीरों से मेरी हीं मिलाते हैं।
अस्तित्व बादलों का दे, सूरज की कश्मकश को बढ़ाते हैं,
पर बरसात की बूंदें बनाकर, आँखों में मेरी हीं बसाते हैं।
पाकीज़गी से तेरी रूह से, रिश्ते जन्मों के बनाते हैं,
पर जन्मों के वो नाते, एहसास में मेरी हीं सजाते हैं।
राहें तय कर, साथ कारवाओं के तुझे चलाते हैं,
पर क़दमों के तेरे सारे निशां, मंजिल में तब्दील हो आकर मुझमें हीं समाते हैं।