वो रोती रही रात भर
क्यूँ टीस उठती है दिल के कोने में कहीं रात भर
इश्क़ पन्ने पे लिखा तो, वो सिसकती रही रात भर
इक फर्द के आने से लगा बंजर जमी मुस्का उठी
बेवक्त चले जाने से उसके वो चीखती रही रात भर,
सेहाराओं के माफिक तिल तिल जलता रहा है वो
इक बूंद शबनम की खातिर वो जागती रही रात भर,
क्या गुमा करे किस बात पर हँसे और खुश हो जाएं
ख्वाहिश भी ऐसी थी कि वो ठिठकती रही रात भर,
करवटों ने क्या हाल किया न वो आए न कोई सपना
मखमली दुपट्टे के कोने से खुद उलझती रही रात भर,
घमाचौकड़ी मची थी इश्क़ मे मुनाफा कितना मिला?
ज़िया कुछ जियादा था हिसाब लगाती रही रात भर,
दिन भर दहकते आग की दरिया मे वो चलती रही
शब हुई, आँखे नम हुई आज फिर रोती रही रात भर,
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निर्मल सिंह ‘नीर’
दिनांक – 28 अप्रैल, 2017