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6 May 2024 · 1 min read

वो मेरी कविता

वो मेरी कविता
झुलस गई
तपती दुपहरी में
एक तो अभी भी
ठिठुर रही है
पेड़ के पीछे
दिया था मैंने छाता
मत भीग पगली
कोई नही आने वाला
तुझे उठाने
पर कहां मानी वो
करती रही इंतजार
कैसे समझाऊं उसे
जिंदगी एक ही सांस
से चलती है,
वो भी खुद ही लेनी पड़ती है।

Language: Hindi
182 Views
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